ज़िन्दगी की पहली चीत्कार, तुमने गोद में उठाया
उसी दिन कह दिया लड़की तू है धन पराया
कोख से निकल कर आँख से निकला जब पहला आँसु
सबने घेर लिया हो कर बेकाबु
बचपन बीता थाम कर हाथ तेरा
कभी जाना नहीं क्या रात क्या सवेरा
घुटनों के बल चल कर खा कर ठोकर
चलना सीखा फिर आखिर रो कर
फिर जाना लड़की की क्या है पहचान
जब समजने लगी हर दिल का अरमान
बचपन में ही सीखा तू दूसरे घर की अमानत
वहाँ जा कर कभी किसी न करना बगावत
फिर सचमुच एक दिन कोई ले आता है डोली
लड़की से भर देते हैं उसकी झोली
छोड़ के मायके के आँगन को पीछे
चली दुल्हन ससुराल के चमन को सीचे
जिस घर में बचपन से जवानी का सफ़र काटा
वही घर आज उसके लिए हुआ पराया
ससुराल की देहलीज़ मान रहीत अपमान रहीत पार न हो
कहीं मायके से भी रिश्ते पर वार न हो
बस यही सोच जिए जा, करके पराये को अपना
कर दे पूरा हर जीवन का सपना
दुनिया कहती है - "लड़की तू है पराया धन"
कैसे बदलेगा दुनिया का ये नियम!!!
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